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जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फैस्टिवल बना मोटिवेशनल स्टोरीज़ का कोर सैंटर


  --पांच दिवसीय समारोह के तीसरे दिन एकत्रित हुए प्रेरणास्पद संदेश देते फिल्मकार, अनेक फिल्मों के जरिए भी मिला जीवन को उमंग और सच्चाई के साथ जीने का संदेश

जयपुर। शहर में आयोजित किए जा रहे पांच दिवसीय चौदहवें जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फैस्टिवल का तीसरा दिन मोटिवेशन स्टोरीज़ के कोर सैंटर के रूप में नज़र आया। यहां आए अनेक फिल्मकार और उनकी फिल्में ऐसी थीं, जिन्हें देखकर सुनकर व्यक्ति अपने जीवन को उमंग और सच्चाई के साथ जीने की राह तय कर सकता है। रविवार का दिन होने की वजह से बड़ी संख्या में लोग जीटी सैंट्रल मॉल स्थित ऑयनॉक्स सिनेमा हॉल पहुंचे। इसके अलावा बड़ी संख्या में देश-विदेश से आए फिल्मकारों ने भी अपनी फिल्मों की स्क्रीनिंग का लुत्फ उठाया और आपस में विचारों का आदान-प्रदान कर इस फैस्टिवल को सार्थकता प्रदान की।

भारत में जुनूनी फिल्मकारों की कमी नहीं - रॉबर्ट इयूगन पोपा

रोमानिया से आए फिल्म निर्माता, निर्देशक और अभिनेता रॉबर्ट इयूगन पोपा अपने लंबे कद और चेहरे पर खेलती स्वाभाविक मुस्कान के बल पर लोगों के आकर्षण का केन्द्र रहे। सिनेमा देखने आए लोग उनके साथ बड़े चाव से सेल्फी लेते देखे गए। जब भी जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के जादू का जिक्र होता है, रोमानिया के फिल्मकार रॉबर्ट इयुगन पोपा का नाम ज़रूर दर्ज होगा। चूंकि पोपा लगातार तीसरी मर्तबा जिफ में शरीक होने पहुंचे हैं और यहां तक कि कोविड से जुड़ी चिंताओं के बावजूद वे फिल्म समारोह में शामिल हुए हैं। मून फिल्म के निर्देशक पोपा मानते हैं कि जिफ का इन्फ्रास्ट्रक्चर अनूठा है, और यहां आकर वे दुनिया के विविध देशों से आए फिल्मकारों से मिल सके। उन्होने महसूस किया कि भारत में सिनेमा को पसंद करने वाले, और फिल्में बनाने को लेकर जुनूनी फिल्मकारों की कमी नहीं है। जिफ का जिक्र करते हुए पोपा ने कहा कि इसके फाउंडर – डायरेक्टर हनु रोज़ एक दूरदर्शी व्यक्ति है, जिसके जुनून के चलते ही यह सम्भव हो सका है। हिन्दी सिनेमा को दर्ज करते हुए उन्होने बताया कि वे सत्यजीत रे की फिल्में देख चुके हैं, वहीं समकालीन फिल्मकारों में उन्हें मीरा नायर की मॉनसून वैडिंग और सलाम बॉम्बे पसंद आई।

 
विकलांगता अभिशाप नहीं, ज़िंदादिली बदल देती है दुनिया - उदयवीर सिंह


दुर्घटना में अपने दोनों पैर गंवा चुके उदयवीर सिंह जिस उमंग के साथ अपने आर्टिफिशियल पैरों से चहल कदमी कर रहे थे उसे देखकर हर कोई इस व्यक्ति के बारे में जानने को उत्सुक था। उदयवीर ने बताया कि वे इंडियन आर्मी में वॉयरलैस ऑपरेटर के पद पर कार्यरत थे। वर्ष 1997 में एक बार वे अपने माल असबाब के साथ भटिंडा से दिल्ली यात्रा कर रहे थे कि एक स्टेशन पर शंटिंग के दौरान गाड़ी से गिर पड़े, जख्म इतने गंभीर थे कि उनके दोनों पैर काटने पड़े। दोनों पैर कटने से एक बार तो ऐसा लगा मानो उनकी दुनिया ही उजड़ गई, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और जयपुर फुट के सहारे खुद को खड़ा किया, तीन डिग्रियां एम.ए., एमबीए और एमसीए हासिल की। विकलांगता के बाद तीन डिग्रियां हासिल करने के फलस्वरूप उनका नाम 2019 की इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में दर्ज हुआ, भारत सेना के प्रमुख विपिन रावत के हाथों उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेट अवार्ड मिला। इसके बाद उन्होंने अपने संघर्ष की कहानी को दर्शाती सात मिनट की फिल्म उदयवीर का निर्माण किया, जिसे जिफ में बेस्ट यू टर्न अवार्ड से नवाजा गया। उन्होंने कहा कि विकलांगता कोई अभिशाप नहीं है, और जिंदादिली इंसान की ज़िन्दगी बदल देती है।

अपने बूते पर लगाए 20 लाख पौधे और बनाई पर्यावरण संरक्षण पर आधारित फिल्म नानी - संविदानन्द

केरल में जन्मे और हरिद्वार को अपनी कर्मस्थली बनाने वाले स्वामी संविदानन्द का जीवन भी लोगों को प्रेरणा देता है। वे पिछले तीन दशकों से पर्यावरण संरक्षण के कार्य में लगे हुए हैं और कश्मीर से कन्याकुमारी तक उन्होंने अपने निजी प्रयासों से बीस लाख पौधे लगाने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। संविदानन्द कहते हैं कि फिल्म लोगों तक पहुंचने के लिए मेरा ‘टूल किट’ है। मैं जब फिल्मकार का तमगा लगाकर लोगों तक पहुंचता हूं, तो लोगों के बात करने का नज़रिया ही बदल जाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए मैनें कई शॉर्ट डॉक्यूमेट्रीज का निर्माण किया और अब पहली फीचर फिल्म नानी लेकर आपके समक्ष उपस्थित हूं। मुझे खुशी है कि इसे जिफ में इस साल के ग्रीन रोज अवार्ड से नवाज़ा गया है। इस फिल्म के ज़रिए भी मैने पर्यावरण संरक्षण का ही संदेश दिया है।

 

इन फिल्मों से भी मिले खास संदेश

धूम्रपान छोड़ा और बना डवलपमेंट कोर्स का हिस्सा

पॉलिश फिल्म लीडर - दा अल्फा मेल दर्शकों को बांध रखने वाली फिल्म है, जिसके चलते फिल्म जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में कई पुरस्कार अपने नाम करने में कामयाब रही। काटिया प्रीवीजिनक्यू निर्देशित फिल्म लीडर पिऑटर की कहानी है, जो धूम्रपान छोड़ने के एक कार्यक्रम में शिरकत करता है, लेकिन घटनाओं का घुमाव ऐसा होता है कि वह एक लीडर के प्रभाव में आकर सेल्फ डेवलपमेंट कोर्स का हिस्सा बन जाता है। यहां उसके ज़ेहन की गुत्थियां खुलती हैं, और वह अपने रिश्ते पर गम्भीरता से विचार करना शुरू करता है, जिसे अब तक वह परफेक्ट मानता रहा था।

विविधताओं से भरा देश है भारत - काटिया

पोलैण्ड की फिल्मकार काटिया प्रीवीजिनक्यू जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के प्रति शुक्रगुज़ार महसूस करती हैं कि उनकी फिल्म लीडर को इतने पुरस्कारों से नवाज़ा गया। वे बताती हैं कि उनकी फिल्म पहली मर्तबा भारत में प्रदर्शित हुई है और वे दिल से खुशी महसूस कर रही हैं कि फिल्म को इस कद़र सराहा गया। भारत का जिक्र करते हुए काटिया ने कहा कि यह विविधताओं से भरा देश है। यहां दिलचस्प कहानियों की कमी नहीं है, और सिनेमा जगत में तेज़ी से नए फिल्मकार उभर रहे हैं। जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल का जिक्र करते हुए काटिया ने कहा कि इस तरह के फिल्म समारोह होते रहने चाहिए, चूंकि इससे फिल्मों और फिल्मकारों को बहुत प्रोत्साहन मिलता है। यह हजारों – लाखों दर्शकों तक फिल्मों को पहुंचाने का काम करता है। काटिया कहती हैं कि वे आशान्वित हैं कि जल्द ही कोविड के जुड़े डर दूर हों, और इस तरह के समारोह और बड़े स्तर पर मुमकिन हो।

मिला पर्यावरण संरक्षण का संदेश

आदित्य जे पटवर्धन की फिल्म ए नोमैड रिवर इस समय के सबसे ज़रूरी मुद्दे पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और जल संकट पर बात करती है। ज्यों ज्यों भारत में यह समस्या बढ़ती जा रही है, वैसे वैसे यह जीवन का बुनियादी संकट बनती जा रहा ही है। फिल्म चार ऐसे लोगों की जिजिविशा को दर्ज करती है, जो समूचे देश में इस समस्या को समझने निकल पड़े हैं।

स्कूल भी नहीं गए पर बन गए जानी - मानी शख्सियत

जिफ के तीसरे दिन प्रदर्शित हुई यशपाल शर्मा निर्देशित फिल्म दादा लखमी - द म्यूज़िकल जर्नी ऑफ पण्डित लखमीचन्द ख़ासी पसंद की गई। फिल्म सोनीपत, हरियाणा के एक गांव में जन्मे लोक कलाकार पण्डित लखीमचन्द की कहानी बयां करती है, जो कभी स्कूल तक नहीं गए, लेकिन हरियाणा की जानी मानी शख्सियत बन गए। महज़ 42 बरस की उम्र में पण्डित लखमीचन्द इतने मशहूर हो चुके थे कि लोग दूर - दराज से बैलगाड़ियों पर घण्टों सफ़र तय कर उनकी रागिनी सुनने और उनके गीत सुनने के लिए आते थे। बताया जाता है कि दूसरे कलाकार उनसे जलने लगे थे, और आख़रिकार किसी ने उनके भोजन में विषाक्त पदार्थ मिला दिया, जिसके चलते उनकी आवाज़ चली गई। फिल्म खूबसूरती से यह ज़ाहिर करती है कि किन संघर्षों से गुज़रते हुए उन्होने फिर से गाना शुरू किया।  


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