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Poetry: फिर बना लूंगी

फिर बना लूंगी

women

तू जला, कितना जलाता है,
      मैं फिर बना लुंगी,
मैं औरत हूँ, 
अपना घर फिर से बना लूंगी,
मैं भी देखती हूँ,
 बन कितना बनता है बेहरम तू,
जब प्यार किया है तुझसे तो 
     धोखा भी खा लूंगी ,

मैं औरत हूँ, अपना घर फिर से बना लूंगी,

कमजोर ना समझना मुझको,
         ताकत बड़ी हूँ मैं,
जब तुझे जन्म दे सकती हूँ,
  तो वो दर्द भी उठा लूंगी,

मैं औरत हूँ, अपना घर फिर से बना लुंगी,
जला तू कितना जलाता है,
  मैं फिर बचा लूंगी....


साभार:- गंगा बुनकर...

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